वायु प्रदुषण से आप हो सकते हैं डिप्रेशन का शिकार :रिसर्च

वायु प्रदुषण से आप हो सकते हैं डिप्रेशन का शिकार :रिसर्च

सेहतराग टीम

वायु प्रदूषण का स्तर पिछले तीन साल के ऊँचे स्तर पर पहुँच गया है, जो कि एक गंभीर स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या की स्थिति पैदा कर रहा है। वायु प्रदूषण न केवल आपके फेफड़ों पर बुरा असर डाल रहा है, बल्कि यह आपके मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को भी प्रभावित कर रहा है। हाल में हुए एक अध्‍ययन के अनुसार वायु प्रदूषण युवाओं में डिप्रेशन और स्‍ट्रेस लेवल को बढ़ा सकता है।

क्‍या कहती है रिसर्च?

एन्वायरमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स पर छपे एक अध्ययन के अनुसार वायु प्रदूषण का बढ़ता स्‍तर युवाओं में डिप्रेशन और स्‍ट्रेस लेवल को बढ़ाने के लिए जिम्‍मेदार है। जिसकी वजह से युवाओं में आत्‍महत्‍या का स्‍तर बढ़ रहा है। यह जहरीली हवा आपके शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य के साथ मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को भी बुरी तरह प्रभावित कर रही है।

इस रिसर्च में 144 युवाओं के एक सामाजिक तनाव के स्‍तर की जांच की गई, जिसमें 5 मिनट की स्‍पीच और गणित टेस्‍ट शामिल था। अध्‍ययन में प्रतिभागियों की हृदय गति और अन्य शारीरिक प्रतिक्रियाओं का अध्ययन करने के बाद, यह पाया गया कि उनमें तनाव के लिए एक ऑटोनोमिक रिस्‍पॉन्‍स के साथ स्‍ट्रेस का लेवल 2.5 का स्तर बढ़ गया था।

वायु प्रदूषण और तनाव या डिप्रेशन के बीच संबंध-

अध्ययन में जहरीली हवा और अधिक तनाव या डिप्रेशन के बीच संबंध को स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन यह अध्‍ययन इस तथ्य पर फिर से जोर देता है कि जहरीली हवा न्यूरोडेवलपमेंट और संज्ञानात्मक कार्य को भी नुकसान पहुंचा सकती है।

वायु प्रदूषण से बचने के लिए डॉक्टरों द्वारा यही सलाह दी जा रही है कि जब तक बिल्कुल ज़रूरत न हो, बाहर जाने से बचें। क्‍योंकि यह जहरीली हवा आपको तेजी से साँस लेने में मुसीबत का कारण हो सकती है। ऐसे में यह किसी को भी तनाव में डालने और खराब मूड के लिए जिम्‍मेदार है।

वायु प्रदूषण आपको डिप्रेशन में कैसे डाल सकता है?

ओशनर जर्नल (Ochsner Journal)में प्रकाशित 2018 के चीन के आंकड़ों के मुताबिक, वातावरण में PM 2.5 में हर 1% की बढ़ोत्तरी पर मानसिक तनाव या डिप्रेशन में 6.67% तक का इजाफा हो सकता है।

इसलिए, जहरीली हवा न केवल आपके फेफड़ों को नुकसान पंहुचा सकती है, बल्कि यह आपके सोचने के तरीके को भी प्रभावित करती है। वायु प्रदूषण हमारे मानसिक स्वास्थ्य को कितना नुकसान पहुंचा रहा है, यह निर्धारित करने के लिए गहराई से शोध करने की सख्‍त जरूरत है।

(साभार- दैनिक जागरण)

 

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